Saturday, January 31, 2009

सुभिक्षा - दिवालियापन के कगार पर

भारतीय शहरों मे खुदरा खरीद का एक प्रतिष्ठित खिलाड़ी सुभिक्षा नकदी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। ११ साल मे सुभिक्षा ने देश भर मे १६०० स्टोर खोले। अब हालत ये है की प्रवंधन के पास ना तो वेतन चुकाने को पैसा है न ही बिल चुकाने को। ऐसी हालत मे ३०० करोड़ की नगदी की ज़रूरत बताकर प्रवंधन अपनी बेबकूफीयों के लिए पुरूस्कार मांग रहा है। निदेशक सुब्रह्मण्यम जी का ये कहना - हम व्यंसाय के लिए प्रतिबद्ध हैं और भागेंगे नही कोई मतलब नही रखता है। मेरे पिछले लेख http://nukkadh.blogspot.com/2009/01/blog-post_28.html का आशय यही था की अभी पता नही कितने राजू हमें बेबकूफ बना रहे हैं।




2 comments:

Anonymous said...

सर जी यह तो सुब्रह्मण्यम निकला. देखिये हमें कितना जलील होना पड़ेगा. आपने सही कहा था इअसे कितने राजू निकलेंगे.आभार.

Unknown said...

sir, PN Subramanian ji - naam ke saamya per mat jaaiye. abhaar.