Sunday, July 31, 2011

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख क्रान्तिकारी उधम सिंह


भारत की आज़ादी की लड़ाई में पंजाब के प्रमुख क्रान्तिकारी सरदार उधम सिंहका नाम अमर है। आम धारणा है कि उन्होने जालियाँवाला बाग हत्याकांड के उत्तरदायी जनरल डायर को लन्दन में जाकर गोली मारी और निर्दोष लोगों की हत्या का बदला लिया, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उन्होंने माइकल ओडवायर को मारा था, जो जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब के गर्वनर थे।[1] ओडवायर जहां उधम सिंह की गोली से मरा, वहीं जनरल डायर कई तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर मरा।

उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। इतिहासकार मालती मलिक के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद आजाद सिंह रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।

अनाथालय में उधमसिंह की जिन्दगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधमसिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे।

उधम सिंह १३ अप्रैल, १९१९ को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग  में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीकानैरोबीब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा।

उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।

बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधमसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। अदालत में जब उनसे पूछा गया कि वह डायर के अन्य साथियों को भी मार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया। उधम सिंह ने जवाब दिया कि वहां पर कई महिलाएं भी थीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है।

4 जून, 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। इस तरह यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अमर हो 
 गया। 1974 में ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए। 

यह आलेख और जानकारी बिकीपिदिया से साभार  लिया गया है और फोटो गूगल से साभार . 

Monday, July 18, 2011

लड़कियां पतंग उडाती हैं


लडकियां उडाती हैं पतंगे
लेकिन चरखी कोई और पकड़ता है
वो डोर पकड़ती है
पतंग को छुट्टी कोई और देता है


वो पतंग तो उडाती हैं
तंग कोई और ही बांधता है
या वो उडाती हैं
पतंगे जो कटके छत पे आती हैं


उनकी पतंग उडती भी है
आकाश में लेकिन
घरवालेआगाह करते हैं
पेच ना लड़ाने की सीख देते हैं


जो लडकियां पतंग उडाती हैं
तो उनसे ये भी कहा जता है कि
भले कोई ढील दे
तुम्हें अपनी डोर खीचके ही रखनी है


हाँ लड़किया पतंग उडाती है
पर क्या पता उसे आसमान निगलता
या धरती खाती है
शाम होते गगन में आवारा पतंगे रहती हैं

Saturday, July 9, 2011

उसके होने से मैं हूँ,

उसके होने से मैं हूँ,
वो नहीं तो अपना वजूद ढूँढता हूँ!
उसके होने से आबाद हूँ,
आज उसके जाने से जर्जर पड़ा हूँ!
तपती रेत से पड़े छालों में इतनी तासीर न थी,
जितने गहरे ज़ख्म उसके जाने ने दिए!
आज जब वो नहीं तो मेरा अस्तित्व नहीं,
बांसुरी बिन कान्हा, कान्हा नहीं!
मैं रेत, वो पानी,
मेरे ऊपर गिरती और विलुप्त हो जाती!
सोचता था ठंडक देगी मुझको,
चली गयी और झुलसा मुझको!
आज वो नहीं,
तो कुछ नहीं!
जानता था रेत और पानी का मिलन न होगा कभी,
पर दिल कहता था थोड़ी देर देख ले अभी!
अब मैं हूँ और मेरी तन्हाई,
और जिससे कभी मेरी याद न आई,
आज उसे याद कर रोता हूँ अकेले में!!!
NEERU KUMAR