Thursday, June 30, 2011
शीला की जवानी' गीत का भावार्थ
I know you want it
But you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Maane na maane koi duniya
Yeh saari, mere ishq ki hai deewani
Hey hey,
I know you want it but you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Maane na maane koi duniya yeh saari
Mere ishq ki hai deewani
Ab dil karta hai haule haule se
Main toh khud ko gale lagaun
Kisi aur ki mujhko zaroorat kya
Main toh khud se pyaar jataun
what's my name
what's my name
what's my name
My name is Sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Na na na sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Take it on
Take it on
Take it on
Take it on
Silly silly silly silly boys
O o o you're so silly
Mujhe bolo bolo karte hain
O o o
Haan jab unki taraf dekhun, baatein haule haule karte hain
Hai magar, beasar mujh par har paintra
Haye re aise tarse humko
Ho gaye sober se re
Sookhey dil pe megapan ke teri nazariya barse re
I know you want it but you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Na na na sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Paisa gaadi mehnga ghar
?ani na mainu ki gimme your that
Jaibein khaali bhadti chal
No no I don't lie like that
Chal yahan se nikal tujhe sab laa dunga
Kadmon mein tere laake jag rakh dunga
Khwaab main kar dunga poore
Na rahenge adhoore
You know I'm going to love you like that, whatever
Haye re aise tarse humko
Ho gaye sober se re
Sookhey dil pe begapan ke teri nazariya barse re
I know you want it but you never gonna get it
You never gonna get my body
I know you want it but you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Maane na maane koi duniya yeh saari
Tere ishq ki main deewani
Ab dil karta hai haule haule se
Main toh khud ko gale lagaun
Kisi aur ki mujhko zaroorat kya
Main toh khud se pyaar jataun
What's my name
What's my name
What's my name
My name is Sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
O no no sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Ain't nobody got body like sheela
Everybody want body like sheela
Drive me crazy coz my name is sheela
Ain't nobody got body like sheela
Everybody want body like sheela
Drive me crazy coz my name is sheela
Ain't nobody got body like sheela
प्रस्तुत उत्तेजक गीत हिन्दी फिल्म जगत के नवीनतम रत्न 'तीस मार खान' से लिया गया है. यह गाना नायिका के संगमरमर जैसे शरीर से आकर्षित होने वाले लंगोट के ढीले पुरुषों पर नायिका की अपमानजनक प्रतिक्रया को व्यक्त करता है. नायिका उन्हें सीधे और कटु शब्दों में बताना चाहती है कि शीशे के पीछे रसगुल्ले की ख्वाहिश करना एक बात है और उसे चखना दूसरी बात!
I know you want it
But you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Maane na maane koi duniya
Yeh saari, mere ishq ki hai deewani
गाने की शुरुआत नायिका के ईमानदारीपूर्ण वक्तव्य से होती है. वो जानती है कि इन मर्दों को उसकी भावनाओं, दिल और प्रेम से कोई सरोकार नहीं. वो तो बस एक ही चीज चाहते हैं. पर वो उन्हें मिलने वाली नहीं. उन्हें मुंह में भर आये पानी से ही अपनी प्यास बुझानी होगी. दुर्भाग्यपूर्ण, परन्तु सत्य.
Hey hey, I know you want it
but you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Maane na maane koi duniya
yeh saari Mere ishq ki hai deewani
Ab dil karta hai haule haule se
Main toh khud ko gale lagaun
Kisi aur ki mujhko zaroorat kya
Main toh khud se pyaar jataun
नायिका पुनः दर्जनों पुरुषों में उसके प्रति जगी वासना पर प्रकाश डालती है. वो अपने आस-पास मंडराते छिछोरों को बताती है कि उनकी दाल नहीं गलने वाली. पर साथ ही यहाँ नायिका के व्यक्तित्व का एक और पक्ष उजागर होता है. सौंदर्य से जागृत अहंकार का पक्ष. वो अपनी सुन्दरता से इतनी प्रभावित है कि उसे किसी पुरुष की ज़रुरत नहीं. वो अपने अन्दर की स्त्री के लिए खुद ही पुरुष बन जाना चाहती है. अब इसे अहंकार की पराकाष्ठा कहें या आत्म-प्रेम की मादकता!
what's my name
what's my name
what's my name
My name is Sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Na na na sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
अब नायिका अपना परिचय देती है. अपना नाम बताती है. और नाम भी ऐसा जो बूढ़ी नसों के लिए वायाग्रा का काम करे. उनमें यौवन का झंझावात ला दे. नाम बताने के साथ वो यह भी बताती है कि वो बहुत ही ज़्यादा सेक्सी है. अपने मुंह मियाँ मिट्ठू. पर इस आत्म-प्रशंसा में भी अहंकार की सुगंध है. वो खुद को इतना ज़्यादा सेक्सी बताती है कि वो सबकी पहुँच से बाहर है. एक ऐसे चन्द्रमा की तरह जिसकी चांदनी तो सबको उपलब्ध है, पर उस चाँद को छूकर उसे महसूस करना किसी के बस की नहीं. यहाँ यह सिद्ध होता है है कि नायिका सौंदर्य की साधक ही नहीं, बल्कि अहंकार से भरी चुड़ैल भी है.
Take it on
Take it on
Take it on
Take it on
अब नायिका सीधे शब्दों में चुनौती देती है. एक ऐसी चुनौती जो शायद मर्दों में शराब के बिना भी साहस ला दे.
Silly silly silly silly boys
O o o you're so silly
Mujhe bolo bolo karte hain
O o oHaan jab unki taraf dekhun,
baatein haule haule karte hain
Hai magar, beasar mujh par har paintra
अब नायिका उनका उपहास करती है. उन्हें मूर्ख कहकर पुकारती है. उन्हें ज़लील करती है. वो मर्द नायिका के बारे में गुप-चुप बातें कर सकते हैं, पर उसके सामने जुबां नहीं खोल पाते. वासना और कायरता का ये अद्भुत संगम है.
Haye re aise tarse humko
Ho gaye sober se re
Sookhey dil pe megapan ke
teri nazariya barse re
I know you want it
but you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
SheelaSheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Na na na sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
यहाँ आखिरकार वासना से मदहोश मर्द कुछ बोलने की हिम्मत जुटाते हैं. वो धीमे स्वर में अपनी इच्छा ज़ाहिर करते हैं. वो बोलते हैं कि नायिका का फिसलता बदन उनके बंजर दिलों में प्रेम का अंकुर ला रहा है. मानो नायिका को उनकी असली इच्छा का पता ही नहीं. इसलिए वह उन्हें फिर से याद दिलाती है कि दिन में सपने देखना छोड़ दें.
यह ख़ूबसूरत गीत आज ही नहीं, सदियों से चला आ रही नर और नारी की मानसिकता को उजागर करता है. नारी हज़ारों घंटे श्रृंगार और व्यायाम में बिताकर इस लायक दिखती है कि मर्द उस पर गिद्ध जैसी नज़रें डालें. पर जब वो नज़रें डालते हैं तो नायिका उन्हें चूजा सिद्ध कर देती है. नर भी कम नहीं. वो नारी के शारीरिक आकर्षण के सामने आपा खो बैठते हैं. जब वासना शिखर पर होती है तो साहस लुकाछिपी खेल रहा होता है. अब ऐसे में मिलन हो तो कैसे हो? इसी सवाल के साथ यह गीत श्रोताओं और दर्शकों के मन में एक कसक छोड़ जाता है.
Saturday, June 11, 2011
शरत के उपन्यास चरित्रहीन की नायिकाए
चरित्रहीन की नायिकाए
शरत बाबू के वर्मा के घर मे लगी आग मे उनकी कई पुस्तको की पान्डुलिपी जलकर राख हो गयी थी. उनमे से एक थी चरित्रहीन जिसके ५०० पृष्ठों के जलने का उन्हे बहुत दुख रहा. इसने उन्हे बहुत हताश किया लेकिन वे निराश नहीं हुए.दिन-रात असाधारण परिश्रम कर उसे पुन: लिखने मे समर्थ हुए. लिखने के बाद शरत् बाबू ने अपनी इसके सम्बन्ध में अपने काव्य-मर्मज्ञ मित्र प्रमथ बाबू को लिखा - ‘‘केवल नाम और प्रारम्भ को देखकर ही चरित्रहीन मत समझ बैठना. मैं नीतिशास्त्र का सच्चा विद्यार्थी हूं. नीतिशास्त्र समझता हूं. कुछ भी हो, राय देना, लेकिन राय देते समय मेरे गम्भीर उद्देश्य को याद रखना. मैं जो उलटा-सीधा कलम की नोक पर आया, नहीं लिखता. आरम्भ में ही जो उद्देश्य लेकर चलता हूं वह घटना चक्र में बदला नहीं जाता.’’ प्रमथ की हिम्मत उस पुस्तक के प्रकाशन की जिम्मेदारी लेने की नहीं हुई.
अपने दूसरे पत्र में शरत् बाबू प्रस्तुत पुस्तक के सम्बन्ध में लिखते हैं- ‘‘शायद पाण्डुलिपि पढ़कर वे (प्रमथ) कुछ डर गये हैं. उन्होंने सावित्री को नौकरानी के रूप में ही देखा है। यदि आँख होती और कहानी के चरित्र कहां किस तरह शेष होते हैं, किस कोयले की खान से कितना अमूल्य हीरा निकल सकता है, समझते तो इतनी आसानी से उसे छोड़ना न चाहते. अन्त में हो सकता है कि एक दिन पश्चात्ताप करें कि हाथ में आने पर भी कैसा रत्न उन्होंने त्याग दिया. किन्तु वे लोग स्वयं ही कह रहे हैं, ‘चरित्रहीन का अन्तिम अंश रवि बाबू से भी बहुत अच्छा हुआ है। (शैली और चरित्र-चित्रण में) पर उन्हें डर है कि अन्तिम अंश को कहीं मैं बिगाड़ न दूँ. उन्होंने इस बात को नहीं सोचा, जो व्यक्ति जान-बूझकर मैस की एक नौकरानी को प्रारम्भ में ही खींचकर लोगों के सामने उपस्थित करने की हिम्मत करता है वह अपनी क्षमताओं को समझकर ही ऐसा करता है। यदि इतना भी मैं न जानूँगा तो झूठ ही तुम लोगों की गुरुआई करता रहा.’’
यह उपन्यास बहुत ही सुगठित है.और मेरी समझ में शरत साहित्य में सबसे सुन्दर है. २० वी शताब्दी के प्रारम्भ के बंगाली समाज से उठाये गए इस कथानक के हर पात्र पर चर्चा विस्तार से की जा सकती है लेकिन यहाँ मैं नारी पात्रो पर ही चर्चा कर रहा हूँ. कहानी में ४ महिला पात्र है उनमे से २ केंद्रीय पात्र है (सावित्री और किरणमयी) और दो सहायक (सरोजनी और सुरबाला). चारो के चारो भिन्न चरित्र लिए हुए है. पहले हम केंद्रीय पात्रो पर चर्चा करें जिन्हें कथानक में चरित्रहीन निरूपित किया गया है.
सावित्री
सावित्री, जिसने एक ब्राहमण के घर में जन्म लिया और उसी के अनुरूप संस्कार और समझ पायी को भाग्य के हाथो मजबूर होने पर दासी के रूप में काम करना पडा. उसे ऐसे कार्य भी करने पड़ते है जो सिर्फ निम्न कुल या जाति की महिलाए ही करती है लेकिन ये सब करते हुए बिषम परिस्थितियों में भी वो अपने चरित्र को बचाए रखती है. बहुत से लालची पुरुष रूपी भेडियो के बीच रहकर भी वो उसी आदमी (सतीश) के प्रति आजन्म समर्पित रहती है जिसे वो प्यार करती है लेकिन खुलकर कभी इजहार नहीं कर पाती. सतीश के मन मे सावित्री केलिए आकर्षण है लेकिन जब सतीश मैस मे उसका हाथ पकड़ लेता है तो वह उसकी इस हरकत के लिए उसे झिड़कती है तो इसलिए नहीं कि उसे इसमे अपना अपमान लगा बल्कि इसलिए कि औरो के सामने ऐसा करने पर कुलीन सतीश की बदनामी होती. वो अंत समय तक सतीश की खूब सेवा करती है एकनिष्ठ प्यार भी करती है लेकिन अपने दासत्व की स्थिति को देखते हुए कभी उसे पाने का सपना नहीं पालती. सतीश की शादी होती है पाश्चात्य शिक्षा और संस्कारों में पली बढी, आधुनिक सोच रखने वाली सरोजिनी से जो सतीश के गायन और संगीत के कारण उसकी दीवानी हो जाती है. सतीश से उसकी शादी होने में पारिवारिक माहौल और धार्मिक सोच की माँ की बड़ी भूमिका रहती है. जैसा कि ऊपर उल्लेख किया है सावित्री को कहानी के प्रारम्भ में ही पाठक के सामने रखकर शरत ने इस पात्र के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धा सबके सामने रखी है.
किरणमयी
किरणमयी के रूप में शरत ने एक अत्यंत रूपवती, चिंतनशील और तार्किक पात्र को कहानी में खडा किया है. पति मृत्यु के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है घर मे तीन ही प्राणी है पति और उसके अलावा एक सास है जिसके लिए अपने बेटे के कल्याण के सिवा और किसी बात की फिक्र नहीं है. दिन-रात वो किरणमयी को जली कटी सुनाती रहती है. पति है जिनकी रूचि सिर्फ इस बात मे रही कि किरणमयी पढ़े. पत्नि की पति से और भी कुछ अपेक्षा होती है शायद वो पति को अंदाजा ही नहीं है. अपने मुख्य गुणों (सौंदर्य, बौद्धिकताऔर तर्क शक्ति) से किरणमयी तीनो पुरुष पात्रो (सतीश, उपेन्द्र और दिवाकर) को आकर्षित और प्रभावित करती है. दोस्त की पत्नि होने के दायित्व के कारण उपेन्द्र शुरू में उसकी खूब सहायता करता है लेकिन सच तो ये है कि बाद के घटनाक्रमों में सबसे ज्यादा उपेन्द्र ही उसे अपनी संकुचित सोच से गलत समझता है और तिरस्कार करता है. उपेन्द्र के डर के कारण ही किरणमयी दिवाकर को भगा कर ले जाने का काम करती है. दिवाकर अनाथ है, परिपक्व नहीं है लेकिन इस तरह भगाकर ले जाने के बाद भी किरणमयी को अभिभावक के रूप मे अपनी जिम्मेदारी का पूरा अहसास है. लोगो की नज़रो मे प्रेमी प्रेमिका या पति पत्नि के रूप में रहते हुए भी और दो जवान शरीरो के एक विस्तार पर सोने पर भी वो दिवाकर को शारीरिक सुख के लिए प्रेरित नहीं करती. दिवाकर को गैरजिम्मेदार होते देख इसके लिए खुद को जिम्मेदार मानते हुए इस भूल का सुधार करती है. अंत मे किरणमयी के किये हुए का औचित्य लेखक समझाता है और उसे क्षमा मिलती है.
एक और स्त्री पात्र जिसका अभी तक जिक्र नहीं किया है वो हैं सुरबाला. ये उपेन्द्र की पत्नि है. पतिनिष्ठ, धार्मिक, पवित्र और बहुत ही भोली जवान महिला है. धार्मिक मान्यताओं मे उसकी अंधभक्ति है. सुरबाला की मौत असमय लेकिन साधारण मौत है.
चार भिन्न प्रकार के स्त्री चरित्रों को लेकर बुने गए इस ताने बाने में शरत के विचार बड़ी तेजी से एक छोर से दूसरे छोर तक जाते है लेकिन जो एक बात विशेष प्रभावित करती है वो ये कि शरत के लेखन ने सभी स्त्री पात्रो की गरिमा को हर हाल में बनाए रखा है. उपन्यास में तत्कालीन हिन्दू समाज का अच्छा चित्रण है और पश्चिमी सोच के प्रभाव और रूढीवादी बंगाली समाज के द्वन्द पर भी अच्छा प्रकाश डाला है.
Monday, June 6, 2011
कैसे लौटे मोहब्बत
जिसके होने से घर रोशनी से नहा जाता
जिसके कहने से कोई बात घर मे होती है
वो मेरा प्यार चुपचाप है दम तोड़ रहा
कैसे लौटे मोहब्बत बस यही सोच रहा
प्यार घुटता है घर मे तो फिर ऐसा करे
आकाश से करे प्यार जिए सबके लिए
लकड़ी की छत तले दम घुटता है मेरा
ले कुल्हाडी अब तोड़ दू सभी दीवारें
इस जेल से निकल बाहर खुले मे आ
नए प्यार के रंगों से सजा दू तुमको
जैसे धरती को मिलाया है बदलिया से
ऐसे हम तुम करे प्यार खामोशी से
होंगी मजबूरिया सनम तेरी और मेरी भी
होंगे गम तंगी के भूख और बेकारी के
मत मांगो तुम हिसाब जमाने भर के
प्यार कर, हमें क्या लेना है जमाने से
Saturday, June 4, 2011
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