पत्तो से पेड़ों के
आती छनकर किरणें
आग सी बरसती है.
मानव की बात दूर
पौधे कुम्हलाते हैं.
चलती है गरम हवा
लू लगने के डर से
घर में छिप जाते हैं.
धूप से पराजित हो
तड़प तड़प जाते हैं.
रुकने की आस लिए
बढते जाते पथिक
छाँव कहीं आगे है
जलते हैं पैर भले
चलते ही जाते हैं.
नीम तले खटिया पर
सोने सी दोपहरी
लेटकर बिताते हैं
चांदी सी रातों में
थककर सो जाते हैं