Sunday, February 6, 2011

ये दुनिया आनी जानी है - आत्म प्रकाश शुक्ला ( प्रसिद्ध गीतकार )





धूप को देख ना मुखडा मोड़ छाँव से ज्यादा नाता जोड़
ना हो खोने पाने में मगन उम्र भर कर लम्बी घुड़दौड़
वक़्त की तेज नब्ज पहचान व्यर्थ है सारा गर्व गुमान
नियति तो सबकी फनी है रे दुनिया आनी जानी है।

किसी को कल्पवृक्ष की चाह कीर्ति के कारण कोई तवाह
देह के पीछे बना विदेह भरे कोई सूने मे आग
चतुर्दिक अपनी आँखे खोल देख जी भर ना मुह से बोल
जिन्दगी अथक कहानी है ये दुनिया आनी जानी है

गया जो उसका क्या पछताव ना मिलकर करना कभी दुराव
बहुत बुजदिल होते वो लोग गिनाते जो छाती के घाव
मिला जो सगज उसे स्वीकार व्यर्थ जीना है हाथ पसार
आँख की कीमत पानी है ये दुनिया आनी जानी है

नुमाईश में ले मंडी हाट सभी के अपने अपने ठाठ
बिक रहे रूप रस रंग गंध चले सब अपने अपने घाट
दर्द से करले नैना चार सभी को बाँट बराबर प्यार हाट
एक दिन लुट जानी है ये दुनिया आनी जानी है


सफ़र की सब शर्ते स्वीकार डगर कितनी भी हो दुस्वार
पत्थरो को ठोकर की छूट शूल को चुभने का अधिकार
पो हो जाये लहूलुहान मिले तब मंजिल का ज्ञान
चंद दिन दाना पानी है रे ये दुनिया आनी-जानी है


धुल का कर इतना श्रृंगार प्यार खुद करने लगे कुम्हार
समय सचमुच पागल हो जाये दिशाए देख-देख बलिहार
रेत पर रख दे ऐसे पाँव खोजता रहे समूचा गाँव
धूल ही अमिट निशानी है रे ये दुनिया आनी जानी है



ये  गीत प्रसिद्ध गीतकार आत्म प्रकाश शुक्ल जी के कही सुने गए गीतों से स्मृति के आधार पर लिखा गया है

5 comments:

इरशाद अली said...

शानदार आलेख

Dr. Sudha Om Dhingra said...

सभी रचनाएँ सुंदर--
पढ़ाने का आभार --
सुधा

निर्मला कपिला said...

bahut hi sundar rachna hai atamparkashji ko bahut bahut badhai apka bhi dhanyvad

निर्मला कपिला said...

bahut hi sundar rachna hai atamparkashji ko bahut bahut badhai apka bhi dhanyvad

Anita kumar said...

badhiya