Wednesday, May 5, 2010

नदी के तट से देखा हमने - आत्म प्रकाश शुक्ला ( प्रसिद्द गीतकार )



नदी के तट से देखा हमने ऐसा अनगिन बार हुआ,
तैरने बाला डूब गया था डूबने बाला पार हुआ।



जेहन की खिड़की खोलके हमने जब-जब झांका जीवन में,
अपने अहम् को अपने कद से ऊंचा आँका जीवन में।
इतनी जेहनी हुई जिन्दगी जीना तक दुस्वार हुआ,
तैरने बाला डूब गया था डूबने बाला पार हुआ।
नदी के तट से देखा हमने -----

सोच समझ शतरंज बिछाई समझ बूझ कर चाल चली,
हैरत में रह गए देखकर अपनी सह पर मात मिली।
पिटती रही जतन की गोटें वक़्त का जय जयकार हुआ,
तैरने बाला डूब गया था डूबने बाला पार हुआ.
नदी के तट से देखा हमने - - - -



मिली किसी को भर के सुराही कही घूँट दो घूँट मिली,
मैखाने से कैसा शिकवा क्या साकी से टला माली।
hअमको जितनी मिली उससे से अपना उद्धार हुआ,
तैरने बाला डूब गया था डूबने बाला पार हुआ।
नदी के तट से देखा हमने - - - -



याचक बनकर कभी ना माँगा गरिमा हो या गुंजन हो,
गिरकर नही उठाया कुछ भी कौडी हो या कंचन हो।
सदा प्रार्थना की बेला में निराकार साकार हुआ,
तैरने बाला डूब गया था डूबने बाला पार हुआ।
नदी के तट से देखा हमने - - - -


8 comments:

अनिल कान्त said...

वाकई जीवन के एक रूप बताया आपने......

अपने अहम् को अपने कद से ऊंचा पाया जीवन में।
इतनी जेहनी हुई जिन्दगी जीना तक दुस्वार हुआ

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Unknown said...

अनिल जी क्षमा करे ये गीत मेरा लिखा नहीं बल्कि मेरे बहुत ही पसंदीदा कवि आत्म प्रकाश शुक्ला जी का है सुधार जारी हैं

shikha varshney said...

bahut hi khubsurat geet hai

दीपक 'मशाल' said...

Jaroor premi dekhe honge.. :)
badhiya geet ke liye aabhar..

दीपक 'मशाल' said...

Jaroor premi dekhe honge.. :)
badhiya geet ke liye aabhar..

Udan Tashtari said...

सुन्दर गीत प्रस्तुत किया, आभार.

गुड्डोदादी said...

इतनी जेहनी हुई जिन्दगी जीना तक दुस्वार हुआ,
तैरने बाला डूब गया था डूबने बाला पार हुआ।

गीत का सार
मेरा सुंदर सपना डूब गया

Unknown said...

amma ye geet mere priya kavi atm praskash shukla ji ka likha hua hai.