Sunday, March 13, 2011

गुनाह -आशा गुप्ता



मेरे ब्लोग पर आज लेखिका के रूप मे आशा गुप्ता जुड रही हैं. आप एक अभिनेत्री, लेखिका और  निर्देशक के रूप मे अंडमान निकोबार मे अपनी विशेष पहचान रखती हैं. मैं अपने ब्लोग पर उनका स्वागत करता हूँ. 






फ़ोन की घंटी की लगातार आवाज सुनकर मैंने हाथ का काम छोड़ कर फ़ोन उठाया "हैलो", दूसरी ओर ज़ारा थी. ज़ारा और मै कालेज के जमाने से गहरे दोस्त थे. बी ए की पढाई ख़त्म होते ही मेरे अम्मी-अब्बू ने जहाँ अच्छा रिश्ता देख कर मेरा निकाह करवा दिया था, वहीँ ज़ारा अब तक कुंवारी थी. अब तो मेरे निकाह को भी चार साल हो गए. आदत-लहजे में हम दोनों एक-दूसरे के उलट ही थे, पर इससे हमारी दोस्ती में कोई फर्क नहीं आया था. हम एक-दूसरे के घर बराबर आया-जाया करते थे. उसने कहा-"रुना एक जरुरी बात कहनी है". मैंने कहा-"हाँ बोल न". वो बोली-"परसों मेरी शादी है कोर्ट में". "क्या"- मै चीख पड़ी.ये मेरे लिए बड़े ही हैरतअंगेज बात थी, क्यूंकि अभी पिछले हफ्ते ही तो हम मिले थे, तब उसने ऐसा कुछ जिक्र ही नहीं किया था. मैंने पूछा- "मजाक कर रही हो?" उसने ठन्डे लहजे में जवाब दिया "नहीं".

मेरी हैरानी बढती ही जा रही थी/ मैंने जानना चाहा कि आखिर वो लड़का है कौन, जिसके लिए उसने इतनी जल्दी हाँ कर दी. उसने कहा-"तुम जानती हो उसे". "किसकी बात कर रही हो" मैंने शंकित होकर पूछा. आवाज़ आई "अमान की". "अमान!!?" मेरी हैरानी का ठिकाना न था -"ये कैसे हो सकता है, तुम तो उसे बिलकुल पसंद नहीं करती थी?" उसने कहा -"हाँ, पर अब मै उससे शादी कर रही हूँ". मैंने शंका ज़ाहिर की कि कहीं उसने कुछ 'गलत' तो नहीं किया. पर उसने इन बातो को सिरे से ख़ारिज करते हुए मुझे दावत दे कर फ़ोन रख दिया. इस बातचीत से मेरा दिल बिलकुल ही उखड चुका था. दिल पांच साल पहले की यादों में खो गया.
 
उन दिनों अमान हमारे साथ ही पढता था. फ़ाइनल इयर में आने पर हमें स्टडी टूर के लिए बैंगलौर जाना था. हम सब चूँकि पहली बार इस ज़ज़ीरे से बाहर जा रहे थे, इसलिए बहुत जायदा रोमांचित थे. २० दिन के इस टूर पर हमने काफी मज़े किये. हमेशा हँसना-हँसाना लगा रहता था. टूर के दौरान ही अमान को ज़ारा अच्छी लगने लगी थी. उसने मुझ से इस बात का जिक्र भी किया. मैंने उसे समझाते हुए कहा कि पहले वह अपनी पढाई ख़त्म करके, अपने पैरों पर खड़ा हो जाये, फिर सोचना. पर सच कहूँ तो ज़ारा कि आदतों को लेकर मै हमेशा शंका में ही रहती थी, क्योंकि ज़ारा की फितरत में शोखियत बहुत थी. हर किसी से बड़े ही दिलफैक अंदाज़ में बात किया करती थी, जिसकी वजह से उसके आसपास मनचलों की भीड़ लगी रहती थी. उसकी इन्ही आदतों के कारण मै अक्सर उसे उंच-नीच समझाया करती थी/पर उसने मेरी बातों को कभी अहमियत नहीं दी. न जाने उस पर किस चीज़ का नशा सा छाया रहता था.

एक दिन मौका देख कर अमान ने ज़ारा से अपने दिल का हाल बयां कर दिया और ये भी कहा की वह उससे निकाह करना चाहता है. ज़ारा ने उसकी सोच को नज़रान्दाज़ कर, सीधे-सीधे मना कर दिया की वह उससे तो कभी निकाह नहीं करेगी. बात शायद आई-गई हो जाती लेकिन पढाई पूरी हो जाने के बाद भी अमान ज़ारा को मनाने की कोशिश करता रहा और हर बार ज़ारा का जवाब इनकार में ही होता. मैंने और अमान के दोस्तों ने भी मिल कर ज़ारा को समझाना चाहा पर वह नहीं मानी. इस बीच मेरी शादी हो गई. धीरे-धीरे पांच साल बीत गए, अमान अब भी ज़ारा के लिए पागल था/ अब तो उसकी नौकरी भी लग गई थी.

 डोरबेल की आवाज़ सुनकर मै ख्यालों की दुनिया से बाहर निकल आई. उठ कर दरवाज़ा खोला. सामने मेरे मियां जी थे. मेरे माथे पर शिकन देख पूछा -"क्या बात है नाजो परेशां नज़र आ रही हो?" मैंने उन्हें ज़ारा की शादी की बात बता दी. सुन कर वे भी उतने ही हैरान हुए जितना की मै हुई थी -"लेकिन ऐसे, अचानक?" मैंने भी हैरानगी ज़ाहिर की. वे बोले -"चलो कोई बात नहीं, आखिर राज़ी तो हो गई अमान से शादी करने को". मैंने टोकते हुए कहा -" न जाने क्यों मुझे इस बात की जरा भी ख़ुशी नहीं". "पर तुम तो यही चाहती थी न" उन्होंने कहा और फ्रेश होने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ गए.

हाँ, ये सच है की मै यही चाहती थी कि ज़ारा अमान से शादी कर ले क्योंकि अमान उसे दिलो-जान से चाहता था और उसका घर-बार भी अच्छा था. इसके बावजूद आज जब ज़ारा उसी अमान से शादी करने जा रही है तो मुझे ठीक नहीं लग रहा था. खैर से, ज़ारा कि शादी हो गई और मै नहीं जा पाई. सच पूछो तो मैंने जाने कि कोशिश भी नहीं की. धीरे-धीरे वक़्त बीतने लगा. मै फिर से अपनी दुनिया में उलझ गई. 

एक दिन अचानक बाज़ार में खरीदारी करते वक़्त मेरी मुलाक़ात अमान से हो गई. कैसी तो हालत बना रखी थी उसने, बिखरे बाल, उदास चेहरा और आँखों में वीरानी सी. मेरे हालचाल पूछने पर, उसने बताया की ज़ारा के बेटा हुआ है. अब वो अपनी अम्मी के घर पर ही है. इसके आगे मै कुछ समझ पाती, वो जा चुका था. इस जानकारी से मेरे पैरों तले जैसे ज़मीन ही नहीं रही. मेरा सर चकराने लगा. मैंने तुरंत ओटो किया और घर की ओर चल पड़ी. अमान की उदासी का कारण अब मुझे समझ में आ रहा था. आखिरकार इस लड़की ने अपनी हरकतों को रंग दे ही दिया. सारा मामला समझ में आते ही मेरा दिल गुस्से से भर उठा. रास्ते बहर मै यही सोच रही थी कि ज़ारा कि शादी को तो अभी सिर्फ पांच ही महीने हुए है, फिर ये बच्चा? तो क्या इसलिए उसने अमान को शतरंज का मोहरा बनाया? ऐसे कई सवाल थे जिनका जवाब मै चाहती थी.

सो दूसरे ही दिन मैंने बाज़ार से उसके बच्चे के लिए सूट ख़रीदा और ज़ारा से मिलने उसके घर पहुँच गई.मुझे देख कर उसे बड़ी खुशी हुई पर उसके चेहरे पर पशेमानी की कोई भी लकीर मुझे नज़र नहीं आई. मौका पाकर मैंने उससे पहला सवाल यही किया कि उसने ऐसा क्यों किया? वो बोली -"इसके सिवाय मेरे पास कोई चारा नहीं था"  "अब?" मैंने जानना चाहा. "अमान ने मुझ से रिश्ता ख़त्म कर दिया है, क्यूंकि यह बच्चा उसका नहीं है और सच कहूँ तो मुझे भी उसकी कोई परवाह नहीं". उसके इस बयान से मेरा दिल नफरत से भर उठा. बस इतना ही कह पाई "ज़ारा अगर शादी से पहले ही तुम अमान को सह्चाई बता देती तो वो बाखुशी तुम्हे कुबूल का लेता, क्योंकि वो तुम्हे बहुत प्यार करता था. पर तुमने उसके साथ धोखा कर खुद को उसकी निगाहों से गिरा दिया है. अफ़सोस इस बात का है कि तुम्हरी नादानी कि सजा तुम्हरे मासूम बच्चे को झेलनी पड़ेगी और अमान को भी, जिसने तुमसे प्यार करने का गुनाह किया". इतना कह कर मै वहां से चल पड़ी.




2 comments:

पूर्णिमा वर्मन said...

बधाई, अच्छी लगी कहानी।

राज भाटिय़ा said...

कई लोग अपने को बहुत चलाक समझते हे, ओर इसी चलाकी मे वो सब कुछ खो बेठते हे, हमारे सामने बेठा आदमी अगर भोलेपन से, प्यार से बात करे तो हमे उसे बेवकुफ़ समझने की भुल नही करनी चाहिये, यही भुल इस जांरा ने की, बहुत अच्छी लगी आप की यह कहानी, धन्यवाद