Sunday, June 6, 2010

यादें : कैसे लगी ये नौकरी - हरि प्रसाद शर्मा




आज भी मेरी स्मृति में अपने उस साक्षात्कार की यादें ताजा हैं जो उस नौकरी में आने का ज़रिया बना जो मैं आज कर रहा हूँ। साक्षात्कार से पहले लिखित परीक्षा होती है और उसे पास करने के लिए उसमें बैठना पड़ता है। हम शुरू से ही एक अगंभीर तबियत के मालिक थे।


जब ये परीक्षा देनी थी तब एक नौकरी के लिए चुन लिए गए थे इसलिए गंभीर होने का कोई विशेष कारण भी तो नहीं था। परीक्षा के लिए अपने कुछ दोस्तों के साथ मस्ती करते हुए रेल से कोटा गए। वहा सवेरे चाय नाश्ता किया। अपने-अपने प्रवेश पत्र निकाले और परीक्षा केंद्र का पता किया और अपने-अपने परीक्षा केंद्र की तरफ निकल गए। परीक्षा केंद्र पहुंचे तो सूचना-पट पर रोल नंबर देखने को प्रवेश-पत्र जेब से निकाला। कागज़ हाथ में था और पैरों के नीचे से जमीन खिसक रही थी। मेरे हाथ में दोस्त का प्रवेश पत्र था। इसका मतलब ये हुआ कि मेरा प्रवेश पत्र दोस्त के हाथो में था।
मन को ये समझाकर कि अब इस परीक्षा में बैठना नामुमकिन है एक प्रयास करने की सोची और दोस्त के परीक्षा केंद्र की तरफ के ऑटो में बैठ गया. उसके केंद्र तक जाने के लिए बीच मे ऑटो बदलना था. जैसे ही ऑटो से उतरा, ऐसा लगा जैसे आधी रात को सूर्य निकल आया हो,सामने के ऑटो से दोस्त उतर रहा था. दोनों ने बिना बात किये प्रवेश पत्र बदले और उसी ऑटो बाले को अपने ने सेंटर चलने को कहा. जब परीक्षा केंद्र पहुचे तो बाहर सन्नाटा था. तुंरत अपना कमरा पता किया और जा बैठे.
तो परीक्षा हो गयी बढिया और बाद में परिणाम भी आया लेकिन क्या है की अपन गीता से प्रेरणा लेकर कर्म करने में ज्यादा विश्वास रखते हैं। परीक्षा दी और भूल गए। जब अखवार में परिणाम आया तो हमने देखा ही नहीं देखते कहा से रोल नंबर थोड़े लिखके रखा था। खैर जिसका कोई नहीं उसका ऊपर बाला तो है डाक से आने बाली सूचना भी इधर उधर भटक के हम तक पहुची और पता लगा कि हम पास हो गए हैं। पुराने अखवार देखे तो वहा भी रोल नंबर मिल गया। दूसरी नौकरी पहले से पक्की थी.

पिताजी रोज शाम को ज्ञान देते ऐसे प्रश्न तैयार करो, ये भी और वो भी। हमारा दिमाग कुछ और ही सोच रहा था। साक्षात्कार के दिन सवेरे कोटा, जहा नवरंग होटल में साक्षात्कार होना था पहुचे। वही अपुनका पुराना तरीका। चाय पी ढावे पे और फिर आगे जाकर रेस्तरा में नाश्ता किया और पानी से बाल भिगोके सँवारे ( कुंवर बेचैन जी की कविता - तालाबों में झाँक संवर जाते थे हम ) और पहुच गए साक्षात्कार देने। वहां जितने भी साथी ( काहे के साथी प्रतियोगी थे सब ) थे वो सब बने ठने अप-टू-डेट, चमकते चेहरे, टाई पहने जामे हुए थे। जिसे पूछो हमसे ज्यादा पढा लिखा। एक बार तो लगा कि भाई फूट ले यहाँ से लेकिन फिर सोचा कि खोने को क्या है? हमारा नंबर आया। अंदर बुलाया, कमरे मे घुसे तो बैठने को कहा और अपुन थैंक्स कहके बैठ गए।

पहला बोला - शर्मा जी आपने अपने बायो-डाटा में होबीज में क्रिकेट लिखा है, बतायें आप क्रिकेट खेलते हो? कमेंट्री सुनते हो? क्रिकेट देखते हो? या कमेंट्री करते हो?मैंने जवाब दिया - सर, मैं क्रिकेट खेलता भी हूँ, क्रिकेट देखता भी हूँ, कमेंट्री सुनता भी हू और कमेंट्री करता भी हूँ ।

दूसरा बोला - अच्छा फिर तो आप क्रिकेट के एक्सपर्ट हुए। मैंने तपाक से कहा - नो डाउट सर

एक धमाका सा हुआ कमरे में - वो सब कुर्सी पर बैठे बैठे हिल गए )

फिर थोड़ी देर मैं एक बोला - अच्छा बताओ गुगली और चाएनामेन में क्या फर्क है? वो मैंने बता दिया दूसरे ने पूछा पुल और ड्राइव मे क्या फर्क है वो भी बता दिया। फिर क्रिकेट पर हल्की फुल्की बात की उसी समय गावस्कर- कपिल देव विवाद हुआ था उस पर बात हुई।

अगला सवाल आया - आपके पास स्नातक में हिंदी विषय रहा है। मैंने कहा जी हाँ रहा तो है।

बोला - हिंदी के एक कवि हुए हैं। मैंने कहा बहुत हुए हैं साहब।

बोला - बच्चन का नाम सूना है? मैंने कहा - खूब सूना है साहब।

बोला - उन्होंने एक किताब लिखी है मैंने कहा - बहुत सी लिखी है साहब।

बोला - मधुशाला पढी है? मैंने कहा पढी है साहब।

बोला - कुछ सूना सकते हो मधुशाला मे से? मैंने कहा कहाँ से सुनाऊं साहब?

बोला - कही से सुना दो। मैंने फिर जो रिकॉर्ड पे पहले कविता बजती है वो सुनाई -

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने बाला,

किस पथ से जाऊं असमंजस में है बह भोलाभाला।

अलग अलग पथ बतलाते सब पर में यह बतलाता हूँ,

राह पकड़ तू एक चलाचल पा जाएगा मधुशाला।

एक बोला ये बताओ ये सिर्फ शराब की बात हो रही है या कोई और अर्थ भी है? मैंने कहा साहब, ये मधुशाला जो है प्रख्यात सूफी संत उमर खय्याम की कल्पना है। ये मस्ती का दर्शन है। जब गांधी जी ने बच्चन जी को कहा की तुम ये क्या मदिरा का प्रचार करते फिरते हो तो बच्चन जी ने ये जवाब दिया था की सर में तो शराब की बात ही नहीं करता. में तो इसमे ये कहता हूँ की -हर धर्म का आदमी मोक्ष प्राप्त करने की कामना करता है। लेकिन उसे यह पक्का पता नहीं है की किस धर्म के रास्ते पर चलकर उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। सभी धर्मो के ठेकेदार उसे अलग अलग रास्ते बताते हैं लेकिन मेरा ये कहना है - तू कोई भी एक राह पकडके चलता जा तुझे मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी।

इसके बाद उन्होंने थोडा राजनीति पर बात की, राजीव गांधी २१वी सदी की बात कर रहे थे नए जोश मे थे उस पर कुछ बात की। फिर उन्होंने बहुत गर्मजोशी से मुझे विदा किया और सभी ने शुभकामना दी। ६ दिन बाद ही इसका परिणाम आ गया और मैंने कोटा केंद्र से प्रथम स्थान प्राप्त किया।

जिसे मैंने खेल समझा - वही जिन्दगी की किताब बन गयी ।


हरि प्रसाद शर्मा
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