Wednesday, December 22, 2010

माँ क्यों रोती है ?




एक बालक ने माँ से पूछा माँ औरते रोती क्यों हैं
माँ ने झट जवाब दिया - हम औरत है यूँ रोती हैं
बेटा बोला - माँ तेरा जवाब मुझे समझ नहीं आया
माँ ने पट जवाब दिया इसे तो कोई न समझ पाया


लड़के ने पिता से पूछा कि पापा माँ क्यों रोती है
पिता ने कहा -ये औरतें बिना कारण रोती रहती हैं
लड़का थोडा बड़ा होकर भगवान से ये प्रश्न पूछता है
भगवान् चक्कर मैं पड़े अब उन्हें कुछ ना सूझता है

भगवान परेशान होकर इन्टरनेट कैफे मैं जाता है
जिसको कोई न बताता उसे गूगल- देव बताता है
जब मैंने औरत बनाईं मैंने उसे विशिष्ट बनाया
पूरी धरा का भार उठाने कंधो को मज़बूत बनाया


स्पर्श मैं जादू हो इसलिए उसके हाथ तो नरम बनाए
उसको आतंरिक शक्ति दी ताकि संतान पैदा कर सके
ताकत दी ताकि दुत्कार खाकर भी बह सेवा कर सके
मैंने उसे मृदुलता दी ताकि बह सबसे प्यार कर सके

मैंने उसमे ये समझ पाने की बुद्धिमत्ता भर दी
कि एक अच्छा पति कभी ना हो सकता बेदर्दी
कभी वो जांचता है कि हमेशा ही तुम साथ हो
उसे तुम माफ़ करदो तुम्ही तो उसकी सांस हो


इन सबके बदले मैंने उसे रोने को आंसू दिए
जब जरूरत हो इनसे काम ले जब तक जिए
तुम ये समझो यही उसकी एक कमजोरी है
वरना वो उतनी ही सशक्त है जितनी भोरी है



जब वह आंसू बहाए तो उसे ये अहसास देना
भले रोये उसे बताना कि वो कितनी प्यारी है
रोकर भी उसका दिल ख़ुशी से चहक उठेगा

और तुम्हारा घर भी खुशबू से महक उठेगा,

Saturday, December 18, 2010

चल पगली तैयार खडा तेरा उड़न खटोला रे - आत्म प्रकाश शुक्ला ( प्रसिद्ध गीतकार )

बीते वर्ष मॉस पखवारे एक एक कर सांझ सकारे
थाम उम्र का हाथ बुढापा हंसकर बोला रे
चल पगली तैयार खडा तेरा उड़नखटोला रे



ख़तम हुआ सब खेल तमाशा अब किस अभिनय की अभिलाषा
थोथे मंचो की तलाश मे भूल गया अपनी परिभाषा
लिए गंध की प्यास मन हिरन वन-वन डोला रे
चल पगली तैयार खडा तेरा उड़न खटोला रे



भोर भई हंस खेल गवाई दोपहरी भर दौड़ लगाईं
गोधूली मे थककर बैठी सांझ देख नैना भर लाइ
अमित युगों से रही बदलती पचरंग चोला रे
चल पगली तय्यार खडा तेरा उड़नखटोले रे



अमृत सिन्धु धारे अंतर  में नाहक डूब मरी पोखर में
प्यासी धरा तृप्त हो जाये इतनी ओस कहाँ अम्बर में
अंतर रतन बेचकर पगली पाहन तोला रे
चल पगली तैयार खडा तेरा उड़न खटोला रे


शब्द रूप रस गंध छुअन में चुम्बन दर्शन आलिंगन में
सारी साँसे हवन हो गयी कुछ काया मे कुछ कंचन में
अब काहे पछताए पिया का आया डोला रे
चल पगली तैयार खडा तेरा उड़न खटोला रे

Thursday, December 9, 2010

परावाणी:The Eternal Poetry: जब जब शासक,खल के समक्ष झुकता है --

परावाणी:The Eternal Poetry: जब जब शासक,खल के समक्ष झुकता है --: "ki Nahi agar Janta Khamosh rahengi aisa hota rehanega"