Sunday, August 15, 2010

हिंदी फिल्मों के निराले कवि प्रदीप

कल  है २६ जनवरी और २६ जनवरी  पर एक गीतकार के लिखे फ़िल्मी गीत पूरे भारत में गुंजायमान हो जाते है क्योकि देश भक्ति का अमर गीतकार कह लो या कवि प्रदीप कह लो बात एक ही  है. कवि प्रदीप के गीतों को गा गाकर भारत का लोक तंत्र ६३ साल का हो गया है लेकिन उनके लिखे गीतों का प्रभाव बिल्कुल कम नही हुआ है. एक फ़िल्मी गीतकार होते हुए भी उनके गीतों को जिस तरह आदर और लोकप्रियता दोनों मिली ऐसा संयोग और कही देखने को नही मिलता. बहुत से लोगो को उनके कार्य के लिए भारत रत्न की उपाधि मिली है.  काव्य प्रतिभा के उत्कृष्ट फनकार कवि प्रदीप ने शताब्दियों से गुलामी की बे़डयों में जक़डी एवं पी़डत शोषित हतप्रभ भारतीय जनमानस में छिपी आंतरिक शक्तिस्रोत से उन्हें अवगत करवाकर, उसे जगाने का कार्य अपने अविस्मरणीय गीत लेखन, संगीत एवं गायन के माध्यम से किया और ये कवि प्रदीप ही थे जिन्होंने फिल्मों की ताकत को पहचानकर उसकी क्षमता का स्वतंत्रता आंदोलन एवं अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध ल़डने वालों के समर्थन में किया।

कवि प्रदीप का वास्तविक नाम श्री रामचन्द्र द्विवेदी था। आपका जन्म मध्यप्रदेश के ब़डनगर में ६ फरवरी, १९१५ को  जन्मे कवि प्रदीप का वास्तविक नाम श्री रामचन्द्र द्विवेदी था.  उनकी प्राथमिक शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की एवं अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्‌यक्रम में प्रवेश लिया। विद्यार्थी जीवन में ही हिंदी काव्य लेखन एवं हिंदी काव्य वाचन में आपकी गहरी रुचि थी और अपनी प्रतिभावान शैली से कवि सम्मेलनों में जन समूह का मन मोह लिया और कवि सम्मेलन से मुंबई के फिल्म उद्योग में चले गए.

सन्‌ १९३९ में बाम्बे टॉकीज के मालिक स्व हिमांशु राय ने कवि प्रदीप की उत्कृष्ट काव्य शैली से प्रभावित होकर उनको ‘कंगन’ फिल्म के लिए अनुबंधित किया, इस फिल्म में अशोक कुमार एवं देविका रानी ने प्रमुख भूमिकाएं निभाई थी। कवि प्रदीप ने सन्‌ १९३९ में ‘कंगन’ फिल्म के लिए चार गाने लिखे, उनमे से तीन उन्होंने स्वयं गाये और सभी गाने अत्यंत लोकप्रिय हुये। इस प्रकार ‘कंगन’ फिल्म के द्वारा भारतीय हिंदी फिल्म उद्योग को गीतकार, संगीतकार एवं गायक के रूप में एक नयी प्रतिभा मिली।

इसके बाद सन्‌ १९४० में निर्माता एस मुखर्जी एवं दिग्दर्शक ज्ञान मुखर्जी की फिल् ‘बंधन’ आयी ‘चल चल रे नौजवान’ जैसे गाने के साथ आपके इस गाने को काफी लोकप्रियता मिली। उस समय स्वतंत्रता आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था और हर प्रभात फेरी में इस देश भक्ति के गीत को गाया जाता था। इस गीत ने भारतीय जनमानस पर जादू सा प्रभाव डाला था। सन्‌ १९४३ में मुंबई की बॉम्बे टॉकीज की पांच फिल्मों ‘अंजान’, ‘किस्मत’, ‘झूला’, ‘नया संसार’ और ‘पुनर्मिलन’ के लिये भी कवि प्रदीप ने गीत लिखे।

देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में शिथिलता आ गई थी। देश के सब ब़डे-ब़डे नेता जेल में बन्द थे। उस समय कवि प्रदीप की कलम से एक हुंकार जगा ‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है’ कवि प्रदीप का लिखा यह गीत अंग्रेजी सत्ता पर सीधा प्रहार था, जिसकी वजह से कवि प्रदीप गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत हो गये थे। कवि प्रदीप ने स्वतंत्रता से पूर्व एवं स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र निर्माण में जो योगदान दिया वह उनकी देशभक्ति का प्रमाण है।
सन्‌ १९५४ में बनी ‘जागृति’ फिल्म कवि प्रदीप के गानों के लिए आज भी स्मरणीय है वे हैं ः
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की, इस मिट्‌टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की.
हम लाये हैं तूफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्हाल के.
दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल

ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी. . . . . .    साठ के दशक में चीनी आक्रमण के समय लता जी का गाया यह गीत जो कवि प्रदीप द्वारा लिखा गया था कौनसा सच्चा हिन्दुस्तानी भूल सकता है? यह गीत आज इतने वषा] बाद भी उतना ही लोकप्रिय है। इस गीत के कारण भारत सरकार ने आपको ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया था।

कवि प्रदीप ने ‘नास्तिक’ एवं ‘जागृति’ के लिए जो गीत लिखा था स्वयं उन्होंने ही उसे गाया भी था उससे सामाजिक विघटन की एक झलक मिलती हैः ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इंसान। चांद न बदला सूरज न बदला,कितना बदल गया इंसान।।’ पैगाम’ फिल्म के लिए कवि प्रदीप का लिखा गीत ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा’ यह गाना भी काफी लोकप्रिय हुआ था। अपने गीतों के बलबूते पर बॉक्स ऑफिस पर रिकार्ड त़ोड व्यवसाय करने वाली फिल्म थी ‘जय संतोषी मां’ जो कवि प्रदीप के जीवन में एक अविस्मरणीय यशस्वी फिल्म का उदाहरण बनी थी।

कवि प्रदीप को अनेक सम्मान प्राप्त हुए जिनमें ः संगीत नाटक अकादमी अवार्ड १९६१, फिल्म जर्नलिस्ट अवार्ड१९६३ एवं दादा साहब फालके अवार्ड १९९७-१९९८ प्रमुख हैं। खेद का विषय यह है कि ऐसे महान देश भक्त, गीतकार, एवं संगीतकार को भारत सरकार ने ‘भारत रत्न’ से सम्मानित नहीं किया, न ही आज तक उन पर स्मारक डाक टिकट निकला।

आपने अपने जीवन में १७०० गाने लिखे। कवि प्रदीप ८३ वर्ष की आयु में ११ दिसंबर, १९९८ को अपने पीछे अपनी पत्नी तथा दो पुत्रियों को छ़ोडकर इस नश्वर संसार से प्रस्थान कर गये। पर अपने अमर व बेहतरीन गीतों के साथ आज भी वे हम सबके बीच है और सदा रहेंगे।

गीत और अन्य जानकारी  अंतरजाल से ली गयी है. स्रोत की सही जानकारी  जल्दी दे दी जायेगी.

9 comments:

shikha varshney said...

कवि प्रदीप और देश भक्ति गीत एक दूसरे के प्राय हैं ..एक दम दिल में उतरते गेट दिए हैं उन्होंने ..शुक्रिया इतनी अच्छी जानकारी का .

शिवम् मिश्रा said...

कवि प्रदीप को सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से शत शत नमन !

रानीविशाल said...

जी हाँ आदरणीय प्रदीपजी मेरे भी आदर्श है उनके देशभक्ति गीत हो या अन्य कवितायेँ वास्तविकता के बहुत करीब भावनाओं से भर पुर होती थी . मेरी दादी और नानाजी उनके सानिध्य के किस्से बहुत सुनाया करते थे ....उनकी रचानों का कायल हर हिन्दुस्तानी है !
बहुत भड़िया पोस्ट दिल से शुक्रिया .......स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं !

daanish said...

महान कवि और गीतकार श्री प्रदीप जी के बारे में
इतनी विस्तार पूर्वक जानकारी देने के लिए
आभार .

राजीव तनेजा said...

महान गीतकार और कवि प्रदीप जी के बारे इस शोधपूर्ण आलेख के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद

अनूप शुक्ल said...

कविवर प्रदीपजी के बारे में जानकारी बहुत सुन्दर है। बहुत-बहुत शुक्रिया इस पोस्ट को लिखने का।

शरद कोकास said...

प्रदीप जी के लिखे शब्द अज भी सच लगते है ।

Archana Chaoji said...

इन गीतों को सुन-सुन कर ही बडे हुअ हैं, और आने वाली कई पीढ़ियों तक ये सुने जाते रहेंगे ...

Anonymous said...

kavi pradeep sl bare me likhane ke liye sukriyk
nishikant amndloi 9300302524