मै और मेरी जिन्दगी भी
अकसर खेल खेलते है
अकसर खेल खेलते है
कभी मै जिन्दगी के पीचे
कभी जिन्दगी मेरे पीछे
कभी लगता है
बस अब मिल गयी
लेकिन फिर होती है
आन्खो से ओझल जिन्दगी
कभी रूठ जाती है जिन्दगी
कभी मान करती है जिन्दगी
कभी आन्खो मे
कभी दिल मे
और कभी आत्मा मे
प्रवेश करती है जिन्दगी
कभी मुझसे मिलने
मेरे घर आती है जिन्दगी
और जब मिलती है जिन्दगी
तभी खतम हो जाती जिन्दगी
कभी दिल मे
और कभी आत्मा मे
प्रवेश करती है जिन्दगी
कभी मुझसे मिलने
मेरे घर आती है जिन्दगी
और जब मिलती है जिन्दगी
तभी खतम हो जाती जिन्दगी
10 comments:
Zindagi... Kavyatmak sundar paribhasha... Kisi bade shayar ka sher hai....
Zindagi to kabhi nahi aayi,
maut aayi jara jara karke...
जिन्दगी के फलसफे को बड़ी खूबसूरती से समझाया है आपने ...
खोते खोते मिल जाती है जिंदगी ...
और जब मिलती है तो खोने को ...
इसी पल दो पल में पूरी उम्र निकल जाती है ...
तलाशते जिंदगी
अच्छी लगी कविता
अब तो जीना है तो जिन्दगी को नमन करना होगा।
wow sharma ji., kya khoob likha hai .bahut hi royal to uchdiyahai zinda gikiphi losphy ko... waha maan gayej i... badhay isweekar kijiye ... aapneahrwobaatiskavit amedaal dihai ,,,jis sekih amg ujartehia ...
वाह री जिन्दगी!!!
बढ़िया.
जिन्दगी के फलसफे को बड़ी खूबसूरती से समझाया है आपने ...
बहुत बढ़िया पोस्ट शर्मा सर !!
ZINDGI KA AEK AJIB FALSAFA HAI ..
bahut khoob zindagi ko samjhane ki koshish
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