Thursday, March 17, 2011

अकेलापन - श्रीमती रजनी मोरवाल


अकेलापन

ये अकेलापन हमेशा सालता रहता मुझे |

मौन कमरों के झरोखे
और खिड़की चुप हुई,
पीर आँखों से बरसती
चुभ रही दिल मैं सुई,

एक वीराना हमेशा पालता रहता मुझे |

भीड़ फैली हर तरफ है
मैं अकेली हूँ खड़ी,
ज्यों समुन्दर के किनारे
पर कोई कश्ती पड़ी,

किन्तु गीलापन हमेशा टालता रहता मुझे |

प्रीति की क्यारी सहेजूँ
कंटकों की बाड़ियों में,
मन उलझकर रह गया है
विरह की इन झाड़ियों में

कौन सपनों में हमेशा ढालता रहता मुझे ?

2 comments:

Udan Tashtari said...

बेहतरीन.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

मौन कमरों के झरोखे
और खिड़की चुप हुई
पीर आँखों से बरसती
चुभ रही दिल में सुई
एक वीराना हमेशा पालता रहता मुझे
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सूक्ष्म गहनतम भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति है ......आपका सुकोमल गीत